यह कविता मुसीबत में आगे बढने की हिंमत देता है। यह कविता मुसीबत में आगे बढने की हिंमत देता है।
आॅंखो ही आॅंखो में बाते लाख करते है.. लेकिन होठों पे कहने को अल्फाज़ कम है.. टूट कर रोना चाहते है... आॅंखो ही आॅंखो में बाते लाख करते है.. लेकिन होठों पे कहने को अल्फाज़ कम है.. ...