दिल के सुकून के लिए कहती हूँ शेर मैं तमगे पे या ख़िताब पर मेरी नज़र नहीं। दिल के सुकून के लिए कहती हूँ शेर मैं तमगे पे या ख़िताब पर मेरी नज़र नहीं।
न महसूस हुए कभी, न अहसास बने कभी, तुम मेरे तो थे मगर मुख़्तसर से। न महसूस हुए कभी, न अहसास बने कभी, तुम मेरे तो थे मगर मुख़्तसर से।
कुछ खुशियाँ पूछ रही थी पता यूँ हीं तक़रार में। कुछ खुशियाँ पूछ रही थी पता यूँ हीं तक़रार में।