ज़िंदादिल ज़िन्दगी
ज़िंदादिल ज़िन्दगी

1 min

144
कितनी मासूम है न ये ज़िंदगी
ज़िंदादिल जिंदगी।
बेहद अनोखी और अलबेली-सी है जिंदगी।
किसी की रहनुमाई
तो किसी की नेकदिली है जिंदगी।
इस जिंदगी के कई रूप, रंग है
यहाँ मुस्कराती सुबह तो ढलती शाम है
किसी के कदमो तले खुशियाँ है, तो
किसी की मुट्ठी भर जमीन में विस्तृत आसमान है।
कोई डूब रहा दर्द के मंझधार में, तो
किसी के पास ख़ुशियों के पल हज़ार है।
मुस्कुराती है जिंदगी गरीब के पनाहों में
सिकुड़ती है जिंदगी बुलंद महलों में।
है ख़्वाहिशें इस जिंदगानी की कि
सब पर इसकी नेक रहमत हो
पर फ़लसफ़ा कुछ कर्मों के पन्नों का है
ये चाहती है कि हो हर दिन सुख की घनी छाँव
पर कहाँ है इन सुंखों का निश्चित ठाँव?
है आज नीम सज़दे तले, तो
कल है बबूल की छाँव