वो चार लोग
वो चार लोग
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कल दिखे थे वो चार लोग
हवाला देता था मेरा परिवार
जिनका
बचपन कटा इस बात को ज़हन
में दबाये
की वो चार लोग ही तो भगवान है
उनकी चार बातें ही देव वचन है
उन चार बातों में घिरा हर इंसान है
चार दिन की ज़िन्दगी है मेरी
चार चाँद इसमें मैं ही लगाऊंगा
ये बोल लड़ता था हर किसी से
उन चार बातों से परे
खुद की एक पहचान बनाऊंगा
फिर रास्ते में दिखी एक लड़की
बारिश के पानी में कूदते चीखते
भूल चुकी थी उन चार लोगो की
बातों को
आदतन फिर बोल ही पड़ा मैं
ख्याल नहीं क्या इसे दुनियादारी का
की अचानक ही एहसास हुआ मुझे
एक ज़हर घुला हुआ है ज़माने में
मिटाने को जिसे नहीं उठ पाता कोई तर्क
जिन से लड़ा उन्ही का अब हिस्सा हूँ मैं
वो चार लोग और मुझ में अब क्या फर्क
