मेरा बचपन
मेरा बचपन
सुबह रेशमी लिबासों से लेकर
मखमली बिछौने तक गुज़रता है दिन
पर नींद क्यों कम सी रहती इसमें
देखा झरोखे से नीचे फिर
सड़क पर सोते उस बच्चे की मुस्कान
सर पे उसकी माँ का जो आँचल था
वो सड़क में उसके लिए मखमल था
सब देख सोच में पड़ता गया
की कमाई दौलत पर गंवाया क्या कुछ
बिन जाने किस राह में चल रहा था
चमक रखने को बरक़रार इस दौलत की
देखो कहीं मेरा जीवन जल रहा था
याद आती है बचपन की अमीरी
जिसमे सुकून ही दौलत थी
इस बेशकीमती दौलत का हिसाब
रखते थे मेरे कुछ यार परिवार
फिर भी उन्ही से दूर देखो
कर रहा हूँ मैं खुद को बेज़ार
पर ये बेज़ारी अब हिस्सा है मेरा
मजबूरी का हवाला देकर जी रहा
पर शायद ज़िन्दगी की सच्चाई ये है
की असल अमीर मैं नहीं वो बच्चा था
दलीलों दस्तावेज़ों के तले दबी ज़िन्दगी
इससे तो कम्बख्त मेरा बचपन अच्छा था
