वो बारिश
वो बारिश
मुददतों से है इंतजार जिसका वो बारिश अभी बरसी कहां
वो सोंधी माटी की महक , वो गूंजती हूक पपीहे की
वो आंगन में गिरती पहली बूंद से उठता धुआं
वो उड़ती बालू को भिगोती , जमाती नीर बदरी,
छप्पर के किनारे से तैरती बूंद बालों में जब गिरती
नीचे तक भिगो कर पायल से टकरा जमीं में मिलती,
चाय के उबाल से जहां मिलती थी अपनों से गुफ्तगू
हंसी ठिठोली से होता था मन हल्का , आनंद था हर सूं
चारों ओर हल्का काला अंधेरा .. महकती बाग की खुशबू,
मन का मचलना, वो आवेग ... वो घटते बढ़ते ज्वार
पूरी भीग जाऊं, धुल जाऊं.. सोचूं ..के आए क़रार,
जानें कहां गुम है वो बारिश ..है कहा छुपी हुई
बाट निहारते मंजर सभी , है कौनसी परत तले दबी हुई,
काश आए और घुटें बादल ऐसें कि भीगे हर ज़र्रा ज़र्रा
बुझाएं प्यास सुलगती धरा की , सावन लगे सावन मेरा ,
मुददतों से है इंतजार जिसका वो बारिश अभी बरसी कहां ।
