वक्त
वक्त
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छीन कर बचपन और
नोचकर मासूमियत मेरी,
ऐ वक्त तूने बदल दी,
यह पूरी शख्सियत मेरी।
चैन छूटा, सुकून छूटा,
यह कैसी इनायतें तेरी,
हर दिन कहीं विश्वास टूटा,
ऐसी हजार शिकायतें मेरी।
तार तार हुए रटे, सुने, पढे किस्से,
यह कैसीअजीब चढ़ाई तेरी,
तेरी ठोकरों के आगे ढेर हुई, ,
सारी किताबी पढ़ाई मेरी
छीना न जाने क्या क्या तूने,
ऐ वक्त यह कैसी चालाकी तेरी,
इस सफर मैं न जाने कहां छूटी,
वह बचपन की बेबाकी मेरी।