वीरों के बोल
वीरों के बोल
खड़े हुए हैं सीना ताने सरहद के पार
न है कोई साथी और न ही कोई यार
देश की रक्षा करना हमारा मूल धर्म
दुश्मनों को उखाड़ फेंकना यही है हमारा कर्म
परिवार से हम बैठें हैं दूर
सामने है दुश्मन क्रूर
नहीं जानते क्या है अगली चुनौती
हमें परवाह नहीं है मौत की
लगा की एक कदम पीछे मुड़ूँ
पर यह क्या, हो गयी जंग शुरू
नहीं कहलाना है गद्दार
हम हैं सिपाहियों के सरदार
न जाने क्या होगा दुश्मन का अगला कदम
आस पास तो फूट रहें हैं बम
बगल में दुश्मन लथपथ अपने ही रक्त में
उसे मारने का मुझमें नहीं है दम
सोचता हूँ होगी कोई माँ, कोई बहन बेचारे की
अब तो ख़त्म हो रही है जीने की लालसा
यही सोचूँ मैं कभी कभी
क्या करूँ बता मेरे खुदा?
साथी कहते हैं मार डाल! इसे मार डाल
पर कुछ समय बाद हमारा भी होगा यही हाल
उसका भी तो होगा घर बार और परिवार
सोचता हूँ, क्या करूँ निहत्थों पर वार?
चलो मार कर मैं होऊंगा वीर गति को प्राप्त
पर क्या परिवार को सहारा देगी सरकार?
कितने देशवासी जानते हैं हम वीरों के नाम?
क्या इस सबका है कोई काम?
इसी ख्याल में डूबा था
की एक गोली हुई सीने से पार
मन में बातें घूम रहीं हज़ार
यहीं पड़ा हूँ रणभूमि में
यहीं पड़ा रहूँगा....
यह कहके छोड़ रहा हूँ अंतिम श्वास ...