वे दिन
वे दिन
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वे दिन भी
क्या दिन थे
हर दिन
बड़े आनंद के थे
क्योंकि घर में
सबकुछ था
भरा पूरा परिवार था
दादा दादी ताऊ ताई
काका काकी सहित
संयुक्त परिवार था
घर के बड़े से से आंगन में
टाबर टोली की फोज थी
गाय का दूध, घी, दही
मक्खन खूब था
खीर , खुरचन
खाने की मौज थी
मम्मी पापा का
लाड़ प्यार
दादा दादाजी का
दुलार था
वो भी क्या जमाना था
किताबों की जरूरत नहीं
घर में ही
कहानियों का खजाना था
वे दिन भी
बड़े आनंद के थे
आज साधन बहुत है
पर वो आनंद नहीं है