पंछी
पंछी
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प्रभात बेला में
पंछी प्यारे गाते हैं
रवि उदय होते ही
पेड़ों से उतर आते हैं।
जल में किल्लोल कर
आनंद से नहाते हैं
दाना-पानी लेकर
बच्चों को खिलाते हैं।
समझदारी बहुत है
अपना घर बनाते हैं
टूट भी जाता घर
नव निर्माण करते हैं।
दाना-पानी लेने
दूर दूर जाते हैं
शाम होते ही सब
पेड़ पर आ जाते हैं।
अम्बर में उड़ते ही
मस्ती में रम जाते हैं
मन होता है वहां
आकर थम जाते हैं।
पंक्ति पंक्ति सुंदर
समूह गान सुनाती है
तिनका-तिनका जोड़
श्रम का ज्ञान कराती है।
प्रकृति की थाती
हर पर मनोहर है
विजन में विहग
धरती की धरोहर है।