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Dr Ritu Nagar

Others

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उड़ती चिरैया

उड़ती चिरैया

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आज मन की दहलीज लांघ,

 उड़ चला बावरा सा,

 आकांक्षाओं की सुंदर बगिया,

 रंग-बिरंगी तितलियों संग,

 कभी बचपन की गलियों में ,

तो कभी सखियों की बतियों में,

उड़ते-उड़ते मेरा मन,

 जा पहुंचा बाबुल की दहलीज पर,

 याद आ गया वह पल, 

जब लाल जोड़े में दहलीज लांघ,

 बाबुल के अंगना की .....

मां - बाबा, भाई - बहन,

 घूम गए नजरों में,

 चल पड़ी नए सफर को,

 मुड़ कर देखा बाबा को,

 भर आई आंखें मेरी भी,

 बाबा की दहलीज में ,

मैं उड़ती चिरैया आंगन की ,

अनजानी राह, 

अनजाने राही के साथ ,

ससुराल की दहलीज में पांव रखते ही,

 नए एहसास, नए रिश्तों का मान,

 कर्तव्य, जिम्मेदारियां,

 बच्चों की किलकारियां,

 सबको भर आंचल में समेट...

 सुंदर सपनों का संसार लिए ,

खड़ी दहलीज पर.....

 मन को ले आई,

 पुनः दहलीज के अंदर।



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