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तुम्हारा पता

तुम्हारा पता

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देश देशान्तरों को

पार करके पहुँचा मैं

मीलों पसरे मैदानों में

पीले सोने जैसी सरसों से

पूछा तुम्हारा पता

 ऊँचे पहाड़ों पर

आसमान से बातें करते

देवदार के पास ठहरा

झुक कर उसने कान में

बताया रास्ता

 

महासागरों के किनारों पर

ठहरा रहा सदियों

तब लहरों ने आगे बढ़ कर

मेरा हाथ थामा

 

न जाने कितने प्रकाश-वर्ष

लम्बा सफ़र तय करते-करते

निविड़ अंधकार के बीच

जुगनुओं ने दिखाई राह

घनघोर सन्नाटे को चीर कर

झींगुर बढ़ाते रहे मेरा हौसला

 

अबूझ जंगलों को पार करते समय

परिंदों ने सुनायीं परी कथाऐं

सर्द रातों में

पुच्छल तारों ने की रौशनी

कि भटक न जाऊँ

 

दिन की तेज़ रौशनी में

सूरज ने अपने घोड़े दे दिऐ

कि जल्द से जल्द पा सकूँ

तुम्हारा पता

 

तब मिलीं तुम

घर की देहरी पर खड़ीं

पैर के अँगूठे से

धरती को कुरेदती हुईं

मेरे लिऐ

अनंतकाल से प्रतीक्षारत।

 


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