अजय एहसास

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4.3  

अजय एहसास

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तलाश

तलाश

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उसकी तलाश और है, मेरी तलाश और

थक जाऊँ ढूंढ करके तो कहता तलाश और।

पहले ही उसने पी लिया भर भर के प्याले ग़म

फिर भी न बुझा प्यास कहे इक गिलास और।।


आकर करीब इम्तहां में पास हो गई

दिल कह रहा है फिर भी आओ और पास और।

तारीफ करूँ कैसे मैं अल्फाज़ के उसके

बातें है अच्छी उर्दू जुबां की मिठास और।।


पहले ही खूबसूरती में थी कमी कहां

पहना दिया ऊपर से जो मखमल लिबास और।

वो देखती मुझको मैं समा जाता हूं उसमें

दीदार न कर पाने से रहता निराश और।।


जब सादगी में रह के रूख़ से परदा हटाया

कहते है सभी लगती हो अब तो झकास और।

मुड़कर नहीं देखें नहीं नजरें मिले कभी

लगता है उन्हे मिल गया है कोई खास और।।


उनकी तो लायकी पे कोई शक नहीं हमको

आगे बढ़ो अच्छा करो कहते शाबास और।

इतना तो सब दिया है ख़ुदा ने तुम्हें जनाब

फिर भी तड़प रहे लगी पाने की आस और।।


जब जब गुनाह करने से रोके मुझे ख़ुदा

मजबूत होता है मेरे मन में विश्वास और।

जीवन मरन के बीच में बस फर्क है इतना

मुर्दे की लाश और है, है जिन्दा लाश और।।


दुनिया का तजुर्बा बड़ा अच्छा हुआ मुझे

फिर भी बताते रहते है कर ले 'एहसास' और।

मरता हुआ इक शख्स है कहता ख़ुदा से यूं

कर लूं कुछ नेक काम बस दे चंद सांस और।।


     


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