तेरा अहसान
तेरा अहसान
एक घर
तुम और मैं
दोनों आए थे साथ मिलकर।
हमको था ये घर साथ बसाना,
फिर क्या तेरा और क्या मेरा?
क्यों ये एक-दूजे को समझाना?
सुख-दुःख के हम साथी,
हर काम के सहभागी,
मैं तुम्हारे साथ हाथ बढ़ाऊँ,
तुम मेरे साथ हाथ बँटाना।
कितना सुखद होगा यूँ जीवन बिताना!
और खुशियों के गीत गाते जाना।
पर तुमने ये क्या पाठ पढ़ा है?
मिथक सा ये अहम् गढ़ा है।
मैं तेरा कंधा बन कमाऊँ,
पर तुझसे कोई आस ना पाऊँ।
इन बातों पर मेरा रूठ जाना,
और फिर तेरा मुझे मनाना,
घर के काम में हाथ बँटाना,
और मुझे ये अहसान जताना,
बहुत मुश्किल है तेरा ये अहसान चुकाना।
बहुत मुश्किल है तेरा ये अहसान चुकाना।।
तुम जो झाडू उठाकर लाते,
तलवार की तरह उसे घुमाते,
केवल दो कमरों में लगाते,
बाकी मेरे लिए छोड़कर जाते।
और फिर पूरे दिन ये गाना,
बहुत मुश्किल है तेरा ये अहसान चुकाना।
तुम यूँ भिंडी न काटा करो,
मिलती हैं बिखरी मुझे ये कहीं-कहीं पर।
साफ़ करने में मुझे पड़ता है बहुत समय लगाना,
और फिर काटी भिंडी को, तुम्हारा यूँ सुनाना
बहुत मुश्किल है तेरा ये अहसान चुकाना।
मैं पूरे घर के कपड़े धोया करती हूँ,
तुम्हारे भी कपड़ों पर मेहनत करती हूँ,
न कभी इस पर कोई आह भरती हूँ,
बस तेरे मन के मैल से डरती हूँ।
बहुत सताता है तेरा मदद से ज़्यादा कह जाना
बहुत मुश्किल है तेरा ये अहसान चुकाना।
सोचती हूँ अक्सर कि
क्यों मैं ड्यूटी निभाती हूँ
एकल माँ की?
क्या जरूरत नहीं है बच्चों को पिता की?
कहाँ है वह हरित वृक्ष,
जो देता छाँव परिवार को हर वक्त!
एक भरोसा, विपत्ति में पास होने का,
साथ हँसने और साथ रोने का।
सालता है बच्चों को तेरा होकर भी न हो पाना,
बहुत मुश्किल है तेरा ये अहसान चुकाना।
यूँ कब तक हम साथ जीवन गुजार पाएंगे?
और कैसे ये तेरा कर्ज़ उतार पाएंगे?
ये न कोई रिश्ता, न कोई नाता है
न ही इस रूप में तू मुझे भाता है।
तो चल, आ बैठकर बात करें।
दिल के भावों से एक दूसरे के घाव भरें।
बस तुम इसमें अपना अहं साथ ना लाना
और छोड़ देना मुझे हर पल ये जताना
कि तेरा यूँ बात करने के लिए आना
बहुत मुश्किल है ये भी अहसान चुकाना।
तेरा अहसान चुकाना।