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आनन्द बल्लभ

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आनन्द बल्लभ

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सवैया

सवैया

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काव्य कला गुण हीन विहीन कुसंग सुसंग वरो कविताई ।

या मतिहीन निकृष्ट मलीन कुलीन करो व हरो पतिताई ।

अम्ब दया का पयोनिधि मथ बरसा सुरभोग करो पविताई ।

जीवन में शुभ छन्द रचूँ व मिटे तम तोम भरो सविताई ।



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