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Ranjana Singh

Others

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Ranjana Singh

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स्वाभिमानी सीता

स्वाभिमानी सीता

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तू आदि शक्ति,

जगत जननी,

धरित्री के अतिरिक्त,

नहीं सामर्थ्य था,

किसी में कि वह नौ माह,

अपनी कोख में,

तुझे पल्लवित कर सके।


तू धर्मपरायण,

कर्तव्यपरायण,

स्वाभिमानिनी,

प्रखर विदुषी,

अद्भुत,

तार्किक सक्षमता तुझमें।


जीवन रूपी,

पथरीली भूमि पर भी,

राह बनाने वाली।


महलो में पली,

कोमलांगी,

जनकनंदिनी,

कठिन परिस्थिति में भी,

बिना विलंब किये,

साहसिक निर्णय लेनेवाली।


चल पड़ी, उस मार्ग,

जहाँ शूल ही शूल मिले।

इतना था स्वयं पर विश्वास,

कि लक्ष्मण रेखा भी,

कमजोर न कर सका,

आत्मबल तुम्हारा।

 

तू तो शक्ति की श्रोत थी,

चाहती तो भस्म हो जाता रावण,

और तू राम के पास वापस चली आती।


किन्तु चुनौतियों को स्वीकारा तुमने,

 श्री राम के स्वाभिमान व पुरुषार्थ,

 रक्षार्थ हेतु, सबला होकर भी,

अबला सी ,

प्रतिक्षा में श्री राम के,

अशोकवाटिका में,

अपने आराध्य श्री राम ,

नाम लिखती रही।


फिर भी विधाता को दया न आई,

वनवास तो पूरे हुए,

किन्तु जीवन आंधियो से,

घिरता रहा,

और तू लव-कुश की माता बन,

पुनः,

रघुकुल को गौरव दिया।


स्वयं पर आए लांक्षण का,

ऐसा प्रत्युत्तर दिया,

कि इतिहास राम से पूर्व,

तेरा नाम लेता रहा।


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