सूखे से हरीयाली तक .....
सूखे से हरीयाली तक .....
हरे भरे से पेड़, हरी भरी सी खेती जहाँ जहाँ तक पहुँचे नजर,
वहाँ वहाँ तक हरियाली ही हरियाली
आसमान से टपकी बारिश की बुंदे, तो धरती से निकले खुशबू
उसी बारिश की बुंदों से, होगी हर जगह खुशहाली ही खुशहाली
हर पत्ता हर पेड़ पौधा, करेगा लहरों से खेल में खेल महकेगी सारी धरती,
गायेंगे पेड़, पौधे, पत्ते, लहरो संग गीत संगीत
मगर.......हो गये दिन महीने, बीत गया पूरा साल नहीं गिरी बारिश की बूँद,
हो गया है सबका हाल सूख गये ओ हरे भरे से पेड़,
सुख गयी ओ खेती पतझड़ आने से पहले गीर पड़ी,
हर डाली से पत्ती सूख गया सारा खेत खलिहान, सूख पड़े कुएँ,
नल, तालाब बौखला उठे पशु, पक्षी, जीव, जंतु,
नहीं मिलेगा चारा पाणी किसी नल में भी अब पाणी नहीं आयेगा,
नहाना धोना अब हफ़्ते में होगा
पाणी की हर बूँद के लिए सबको, हफ़्ते महीने तरसना होगा
नहीं मिलेगा अब पाणी किसी को, नहीं मिलेगा खाने को धान,
कब बरसोगे वरूण देवता, कब होंगे हम सब पर मेहरबान
आपके आने के इंतजार में, लगा बैठे है सब अपना ध्यान
टप टप बूँदें गिरा दो अपनी, हो सारा जलमय संसार
फिर से भरे हर कुएँ, तालाब, नल को भी पाणी आये
हर बार उस दिन का हम सब कर रहे है, हर घड़ी हर लमहा इंतजार
मगर ......भूखे सूखे रहना पड़ेगा सबको, नहीं करोगे जल का सन्मान
एक बात सब मन में ठानो, हर एक बूँद को बचाकर रखना सीखो
बारिश की हर बहती धारा को, अपने खेत आंगन में सोखने दो
बारिश के पाणी का संचय करके, जल का स्तर धरती में बढ़ा दो
ढेर सारे पेड़ पौधे लगाकर, वरूण देवता को प्रसन्न कर दो
तब जाकर धरती माँ झूमेगी हर पल, हर खेत खलिहान डोलेगा हर पल
होगी चारों और हरियाली, कभी ना पड़ेगा सूखा
धरती पर पड़ती रहेगी बारिश की बूँदें, धरती पर हर लमहा हर पल.
