सूखा पत्ता चिनार का
सूखा पत्ता चिनार का
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चिनार का वो सूखा पत्ता,
सुर्ख़
जो तुम ने दिया था मुझे एक दिन
नसीम बाग़ में जब हम टहला करते थे
वो पत्ता आज भी मेरे किताब के पन्ने में रखा हुआ है ।
जब मैं चली जाऊँ, दूर, बहुत दूर,
वो पत्ते को
एक मुट्ठी मिट्टी में मिला कर
मेरे दफ़न की मिट्टी में मिला देना
एक दिन वहाँ पर एक नया पेड़ उगेगा
तब उसकी छाँव में बैठना तुम
और जी भर के लिखना
नज़्म मेरे नाम के
और अपनी गहन गंभीर आवाज़ में उन्हें पढ़ते जाना,
और दूर, कहीं दूर से
मैं सुनती रहूँगी
मैं सुनती रहूँगी.
बुशरा अल्वी
नई दिल्ली