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Pooja pandey

Others

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Pooja pandey

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सुनो दिसंबर

सुनो दिसंबर

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सुनो दिसंबर,


तुम गहन एहसासों से भरे पड़े हो। तुम्हारी धूप, तुम्हारी सुबह, तुम्हारी धुंध,

तुम्हारी ओस, तुम्हारी शाम, तुम्हारी रात सब मुझे चीख-चीख के दिलाती हैं एहसास

उस खालीपन का जो अब भरता ही नहीं और बता जाती है

उस बहुत सारे प्रेम का पता जो सहेज रखा है मैंने अपने भीतर...।


सुनो दिसंबर,


कभी बैठ कर करो हमसे गुफ्तगू तो बताये तुम्हें हम की तुम्हारी हर शाम की धुंध

हमें उस दौर की याद दिलाती हैं जब हमारी भी शाम दीदार-ए-यार से गुलजार

रहा करती थी...।


सुनो दिसंबर,


तुम्हारी हर दिन की खिली धूप मुझे एहसास दिलाती है मेरी उस खिली

जिंदगी के पहलुओं का जिसे सालों पहले कहीं बक्से में बंद कर छोड़ दिया है मैंने,

जिसे अब समेटना की कवायद भी करूँ तो मुनासिब ना हो सकेगा...।


सुनो दिसंबर,


हर सुबह तुम्हारी मुझे महसूस कराती है मेरे अंदर हर दिन घुटते उस बुत बन चुके इंसान की

जिसकी जिंदगी के अंधेरे ये उगते सूरज की रौशनी भी ना खत्म कर सकेंगे...।


सुनो दिसंबर,


तुम्हारी धुंध मुझे हर दिन दिखाती है खुद में उन गुजरे पलों की झूठी आकृति

जिसे मैं चाह कर भी सहेज नहीं सकता ...।


सुनो दिसंबर,


तुम्हरी ओस की बूंदें हर दिन मेरे आँसू में मिल बन जाती है एक दूजे की दर्द की साथी,

जिसे छिपाना भी नामुमकिन ही लगता है...।


सुनो दिसंबर,

तुम हो सच में मेरे मीठे दर्द के सब से खुशनुमा एहसास

जिसे शब्दों में बयां कर पाना मेरे लिये नामुमकिन सा है और हमेशा ही रहेगा शायद...


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