सुकून
सुकून
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मेरे गाँव की वह सड़कें जहाँ
आराम से जी भर पाता हूं मैं
अब शहर के चौड़े रोड पर
गाड़ी भी नही रख पाता हूं मैं
गाँव के मिट्टी के मैदान में जहाँ
हज़ारो की भीड़ में भी हर उत्सव मानता हूं मैं
शहर में उत्सव के लिए रकम चुकाना पड़ता है
तब गाँव के हर मैदान में सुकून बड़ा पाता हूं मैं
गाँव की उन गलियारों में जहाँ
मोटरसाइकल खूब घुमाता था मैं
पर आज शहर के रोड पर ,
साइकल भी नही निकाल पाता हूं मैं
गाँव के हर बगिया में जहाँ
स्वास शुद्ध पाता हूँ मैं
अब शहर के उन बंगलो में जहाँ
पौधों को गमलों में पाता हूं मैं
गाँव की चैन-सुकून में जहाँ
नींद भी गहरी पाता हूं मैं
अब शहर शोर-गुल्लों में जहाँ
सो भी नही पाता हूं मैं
मेरे गाँव की वह सड़कें जहाँ
आराम से जी भर पाता हूं मैं ।
