सफ़र
सफ़र
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सफ़र ज़िन्दगी का...
बस इतना - सा टुकड़ा है....
तयशुदा सफ़र अब दीवार पर....
फोटूओं में जकड़ा है...
तू -
किस बात के लिए अकड़ा है?
अभी कल तक...
चल रहे थे जो क़दम...
डगमगा... दीवार पर चढ़ने लगे।
ये भी क्या मजबूरियाँ हैं आदमी की!
ऐ इंसां!
तुझे किस बात का नखड़ा है?
आदमी....
ज़िंदगी भर चलता है बस.....
दो गज़ के लिए!
होके पामाल बिखरता है....
सजधज के लिए!
ऐ ज़िन्दगी!
तू ही बता ये क्या लफड़ा है?
