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Dr. Akansha Rupa chachra

Others

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Dr. Akansha Rupa chachra

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सफ़र

सफ़र

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सफ़र ज़िन्दगी का...

बस इतना - सा टुकड़ा है....

तयशुदा सफ़र अब दीवार पर....

फोटूओं में जकड़ा है...

तू -

किस बात के लिए अकड़ा है?


अभी कल तक...

चल रहे थे जो क़दम...

डगमगा... दीवार पर चढ़ने लगे।

ये भी क्या मजबूरियाँ हैं आदमी की!

ऐ इंसां!

तुझे किस बात का नखड़ा है?


आदमी....

ज़िंदगी भर चलता है बस.....

दो गज़ के लिए!

होके पामाल बिखरता है....

सजधज के लिए!

ऐ ज़िन्दगी!

तू ही बता ये क्या लफड़ा है?


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