सचाई की खोज
सचाई की खोज
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थक चूका हूँ मैं, रुक जाता हूँ,
भटक चूका हूँ मैं, अब संभल जाता हूँ।
हर दरवाज़े पर आवाज़ लुगाता,
हर खिड़की को खट्ट खट्टाता।
हर अधूरी चाहत को समझाता,
कि कभी तो सुन ले इस दिल की गुहार को।
कभी तो चक ले उमीदो कि अचार को,
कभी तो देख ले बंद आँखों के वो स्वप्न।
और फिर नींद से जाएगी इच्छा जो,
फिर जो दिल में सैलाब सा आया,
फिर उठायी कलम नीति कि।
भर दिए कोरे कागज़ ज़िन्दगी के किताब में,
भर गयी सोच तो समझ में आया,
कि यथार्थ है झूठ, कल्पना में ही सच को पाया।
