गढ़े मुर्दे उखाड़ना, ये समाज की पहचान है आज समाज, समाज नही, एक श्मशान है! गढ़े मुर्दे उखाड़ना, ये समाज की पहचान है आज समाज, समाज नही, एक श्मशान है!
कुछ मुकम्मल ख्वाब, पर अधूरे होने पर नाज़ भी हैं, उस पुरानी डायरी की धूल की कसम, आहटें आज भी हैं। कुछ मुकम्मल ख्वाब, पर अधूरे होने पर नाज़ भी हैं, उस पुरानी डायरी की धूल की कसम, ...