Radhey Shyam
Others
कितना सताया कितना रुलाया और सावन तू अब आया
सूख गई धरती सूख गए पत्ते सूख गई नदिया और झरने
बेचैन मन था आकाश तपन था
हवाओ में मानो अग्नि का कण था
फिर भी तू तब ना आया
कितना सताया कितना रुलाया और सावन तू अब आया।
ख्वाहिशों के ...
सदियों का बनव...
अब नेत्र खोल ...
सावन तू अब आय...