सावन तू अब आया
सावन तू अब आया
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कितना सताया कितना रुलाया और सावन तू अब आया
सूख गई धरती सूख गए पत्ते सूख गई नदिया और झरने
बेचैन मन था आकाश तपन था
हवाओ में मानो अग्नि का कण था
फिर भी तू तब ना आया
कितना सताया कितना रुलाया और सावन तू अब आया।