साथी
साथी
1 min
184
ढलता सूरज है हर शाम,
करके हवाले चाँद को उसके काम l
बिखरी चांदनी में शम्मे-मोहब्बत जलती हैं,
और धुआं जज़्बा-ए-इश्क़ की उठती है l
लाता सूरज नयी सुबह है हर रोज,
हर रात बना के चाँद को फ़िरोज़ l