साँवरे
साँवरे
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नव पल्लव शोभा,
निरखत है,
पद अरूण कमल,
जस शोभित है ।
लाल अनारसम दन्त,
पंक्ति विराजत है,
अक्षि खञ्जन नेत्र,
सम राजत है ।
पंख मयूर की शोभा,
अतुलित सिर,
विराजत है ।
बाँसुरी हाँस कमर,
धरि के पीत पटा,
उन अंग में सोहै ।
बैजन्ती उर शोभित,
ऐसो ब्रजाधीश कान्हा,
मन मोहन रूप,
बनावत है ।
नित मंगल करै,
सबै एहि निमित्त,
शीश झुकावत है ।
