साजना....
साजना....
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छिपा चाँद जाने किधर साजना ,
बुझी चाँदनी इस क़दर साजना ।
हुई रात काली गवाँ रौशनी ,
लगी है इसे क्या नज़र साजना ।
दिखाई न दे कुछ सुनाई न दे ,
अँधेरी हुयी सब डगर साजना ।
ग़जब आसमाँ यूँ हुआ चाँद बिन ,
लगे ठूठ जैसा शज़र साजना ।
तिरा साथ चाहूँ चली आऊँ मैं ,
जहाँ तू कहे औ जिधर साजना ।