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Nitu Mathur

Others

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Nitu Mathur

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रूखी हवा

रूखी हवा

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वो सूखी, गहरी हवा...

जो बालों को बिखरा गई, यूं होठों को सूखा गई,

चेहरे की हंसी, आंखों की नमी , गालों के गड्ढे मिटा गई,


ये कौनसी हवा है,किस ओर से आई है, 

ये कितनो को करेगी " रूखा", ये कहां तलक जायेगी


क्या रफ़्तार है इसकी. . क्या है इसकी नीयत? 

ये जो बह रही है अपने आवेश से..

जाने क्या सोचे है, ..क्या है इसकी तबियत? 


कहीं आंधी की ना ले ये सूरत

ना तूंफा की शक्ल इख्तियार करे

ना मचाए कहीं कोहराम ये

ना तबाही के मंजर ये खडा करे


ये आसार अच्छे नहीं ,ना ये संकेत भले हैं

ये इरादे इसके नेक नहीं..

की रेत के घर जो ये ढाए हैं


के अब न होगी इसकी मनमानी, 

ना गवारा है इस क़दर होना बेकाबू 

बड़ी मुश्किल से ये बाग हमने बनाया है

ना यूं उजड़ने देंगे इसको..

ना यूं मिटने देंगे इसकी खुशबू


वो चेहरे की हंसी वो होठों की हंसी

इसे फिर से लौटानी होगी.. 

और किस तरह तरन्नुम में बहना है

इस "हवा" को अब सीखना होगा,


बहुत हुआ खेल इसका 

ना इजाज़त है अब दहशत की

बहना होगा कायदे से, लानी होगी खुद मैं नमी

इस बागान की सलामती मैं ना रहे कुछ भी कमी।


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