प्यारे बाबा !
प्यारे बाबा !
1 min
62
सख़्त अल्फ़ाज़ कहकर ,
वो रोया था छुपकर ।
कंधों से उतार कर ,
सिखाया चलना अपने पैरों पर ।
वही जो ऐब निकालता है अक़्सर ,
के हो वजूद मेरा जैसे बुलंद शजर ।
ऐसे सिखाता है अहम सबक-ए-सब्र ,
के भटकता है जस्तुजू-ए-परवरिश में दरबदर ।
सूरज हो तो है घना अम्बर ,
संभालता है कभी ख़ामोशी से ,
तो कभी ज़ोर से गरजकर ।
वक़्त रहते इस नेमत का करदो अदा शुक्र ,
सब खो चुके होंगे जब देखोगे पलटकर ।
वही जिसके जज़्बातों से रहे हम बेखबर ,
ए खुदा मेरे वालिद की करना दराज़ उमर ।
