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पुराने खण्डहर

पुराने खण्डहर

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बेबस, लाचार से पड़े, अनकहे, अनसुने से.. पुराने खंडहर.....

वज़ूद को खोजते, रसूख को ढूँढते..

हर्षोल्लास खो चुके, विरह, वेदना से परिपूर्ण,

 पूर्ण होके भी अपूर्ण...

हाँ, वही पुराने खंडहर...

बिल्कुल वही, अट्ठाहस करती दीवारें,

आकाश को चूमती मीनारें..

शान-ओ-शौकत, ढोल, नगाड़े,

 थिरकते पैर, झूमते घुँघरु, मधुर संगीत, हर्ष गीत...

अपनी दुर्दशा पर, करुण क्रदंन करते,

 रोते, बिलखते, चीखते.......

पुराने खंडहर तुम गऐ  हो कभी ?

 इनसे मिलने कभी जाना और देखना...

विलुप्त होती नक्काशी,

 सूखे कुऐं , धूमिल चित्र, टूटे बिखरे आईने,

आवारा जानवर, दीवारों पर अनचाहे पेड़,

 शराब की खाली बोतलें.. जुऐ के अड्डे.....

.पुराने खंडहर

 हाँ, ये वही पुराने खंडहर हैं..

 जहाँ छिपा है स्त्रियों का त्याग,

मान, सम्मान की ख़ातिर बलिदानों की गाथाऐं...

 तलवारों की खनक,

हाथियों की चिंघाड़,

घोड़ों की हिनहिनाहट...

 दबकर रह गई...

अब सूने पड़े......

पुराने खंडहर

 साहस, बलिदान के प्रतीक यही पुराने खंडहर,

 सुनते हैं, चीखें... बेटियों की,

जो इन्हीं पुराने खंडहरों की गोद में लाई जाती हैं...

 बेआबरु करके.. मार दी जाती हैं....

 


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