प्रकाश चालीसा
प्रकाश चालीसा
जित देखो प्रकाश की माया। बिन प्रकाश के दिखे न काया।।
इन्द्रधनुष सच वर्ण विक्षेपण। सप्त रंग दिखला देता क्षण।।
रंग बैगनी बगल जामुनी। नीला हरा व पीला वर्णी ।।
नारंगी के बाद लाल है। श्वेत सप्तरंगी कमाल है।।
सूर्यप्रकाश श्वेत है दिखता। इन्ही सप्त रंगों से बनता ।।
बै.जा.नी. ह.पि. ना.ला. जानो। या VIBGYOR रूप लघु मानो।।
V के पहले पराबैगनी। अति आवृत्ति विद्युत तरंगिणी ।।
प्रकाश विद्युत प्रभाव दाता। फोटानों की UV माता।।
रक्त अन्त अवरक्त मानिए। ऊष्मा दाता इसे जानिए।।
आवृत्ति इसकी होती है कम। किन्तु तरंगदैर्ध्य ज्यादा दम।।
क्रमावृत्ति VIBGYOR घटाये। किन्तु तरंग दैर्ध्य बढ़ जाये।।
चले प्रकाश साल भर दूरी। प्रकाश वर्ष कहाए पूरी।।
3 लाख kms गति है। विद्युत चुम्बकीय की मति है।।
पन्चान्नवे खरब km है।। दूरी लाईटईयर सम है।।
खगोलीय दूरी पैमाने। लाईटईयर, पारसेक जाने।।
एक पारसेक Ly कितना। तीन दशमलव छब्बीस जितना।।
प्रकाश किरणें सीधी चलतीं। माध्यम परिवर्तन पर डिगतीं।।
चले विरल से सघन माध्यम।। अपवर्तन का कोण बने कम।।
इससे उल्टा सघन से विरल। अपवर्तन का कोण बढ़ा चल।।
चमकदार से जब टकराये। रिफ्लेक्सन लाइट कर जाये।।
कोण आपतन सम रिफ्लेक्सन। किन्तु दिशा होवे परिवर्तन ।।
वस्तु परावर्तित रंग करती। उसी रंग की ही वो दिखती।।
लाल रंग कम करे प्रकीर्णन। ज्यादा दूरी तब भी दर्शन।।
अत: निशान लाल है खतरा। रोक न सकता रेड को कोहरा।।
गति प्रकाश की मान अधिकतम। बाकी सब भौतिक गतियां कम।।
हैं प्रकाश के अजब फसाने। छाया प्रतिछाया पहचाने।।
सनलाईट फोटो-सिंथेसिस। हरे-भरे पादप करते विश।।
दर्पण लेंस समोत्तल अवतल। चेहरा देखो दर्पण समतल।।
खोज तरंग प्रकाश हाईजन। कणिका रूप बताये न्यूटन।।
डी ब्रोग्ली द्वैती बतलाये। क्वांटम नियम प्लांक समझाए।।
साथ साथ दो प्रकृति न चलती। जब तरंग तब कणिका छुपती।।
चंद्र शेखरम व्यंकट रामन। जिनने व्याख्या किये विवर्तन।।
पराबैगनी के जो खतरे। लेती सोख ओजोन परत रे।।
अत: ओजोन की परत बचाओ। सुनो प्रदूषण मत फैलाओ।।
ग्रह कोई न स्वयं प्रकाशित। सौर ऊर्जा पर ही आश्रित।।
सनलाइट से चांद चमकता। प्रकाश का रिफ्लेक्सन करता।।
तारे होते स्वयं प्रकाशित। नाभिकीय संलयन सुनिश्चित ।।
चले प्रकाश वात निर्वाता। ट्रांसपैरंट पे दौड़ लगाता।।
गति निर्वात अधिकतम पाता। सघन माध्यम वेग घटाता ।।
अब प्रकाश के विविध प्रदाता। आर्टिफिशियल और विधाता।।
बिन प्रकाश के रहे न जीवन। पौधे पेड़ न जन्तु जीव जन।।
