प्रीय सखी
प्रीय सखी
यह दोस्ती भी है कैसी
अब हो चुकी है सालों पुरानी।
वह दिन ही थे कुछ ऐसे
इन्हे भूला जाए तो कैसे?
हर बार जब आती तेरी याद
करती है तो ख्यालो में कुछ संवाद।
बातें इधर उधर की किया करते साथ साथ
वह दिन भी भरे थे ऐसी यादों से।
इन्हें भुला जाये तो कैसे?
एक दिन हम हुए एकदूसरे से परेशान
और पेश आने लगे थे अनजान,
तीन दिन बाद
मिले थे माफ़ी मांगने,
परन्तु कर बैठे बचपन की बातों को याद
और भूल गए माफी का एहसान,
वह दिन भी थे यारी के
इन्हें भुला जाये तो कैसे ?
दोस्ती के कारण मुझपे जताती थी अधिकार
परन्तु उसमें भी था मां मस्ती और गुस्से का समाहार
रिश्तों से भरी है ये दुनिया निराली
सब रिश्तों से प्यारी लगती है दोस्ती तुम्हारी।
मैं वो नहीं जो तुझे गम में छोड़ दूं
मैं वो नहीं जो तुझ से नाता तोड़ दूं
मैं वो हूं
अगर तेरी सासें रुक जाए तो
अपनी सासों से जोड़ दूं ।
यह विश्वास दिलाया तूने यार,
करती है तू मेरी चिन्ता बिलकुल माँ के समान।
दोस्ती रहेगी तेरी कसम
जो तूने दोस्ती दिल से निभाई,
तारों के लिए रात क्या जिसमे चाँद न हो
मेरे लिए वो दिन कहाँ जिसमें तेरा नाम न हो,
मैंने पाई है ऐसी सखी ज़िन्दगी के लिए
जिसके रवाना होने पर भी
याद रहेगा वह दोस्ताना।
वह है मेरी प्रिय सखी
और रहेगी मेरी सबसे प्रिय की प्रिय सखी।
