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Sudhir Srivastava

Abstract

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Sudhir Srivastava

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पितृपक्ष की विडंबना

पितृपक्ष की विडंबना

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यही आज की विडंबना है

जिसके दोषी हम आप भी हैं,

गंगा में खड़े होकर,

हाथ में गंगा जल लेकर भी 

यदि इससे इंकार करते हैं

तो भी निश्चित है कि हम आप झूठ बोलते हैं,


झूठों के सबसे बड़े सरदार हैं।

अपवादों को छोड़ दीजिए

तो सच मुंह बाये सबके सामने खड़ा है

जीते जी जिनकी कभी न सेवा करते हैं

मर जाने पर उनकी पूजा कर

श्रवण कुमार की श्रेणी में खुद को खड़ा करने का

सबसे बड़ा दिखावा करते,

ऐसा करके हम खुद को ही गुमराह करते

आज जिन पुरखों के लिए खाई खोदते हैं हम

वो उनके लिए नहीं अपने लिए

उससे गहरी खाई की नींव खुद से 

खोदने का श्री गणेश हम ही कर रहे हैं,


अपनी औलादों के सामने अपनी नजीर 

बड़ी बेशर्मी से हम आप खुद पेश कर रहे हैं।

आप तो अपने पुरखों की पूजा

मरने के बाद कर तो रहे हैं,

दुनिया समाज के डर से ही सही

दिखावा ही सही कुछ कर तो रहे हैं।


पर आज की औलादें अब 

दुनिया समाज की चिंता कहां करती हैं।

जीते जी जो कर दे रही हैं

वो भी हमारा आपका सौभाग्य है

वरना मरने के बाद वे कुछ न करेंगी

हमारी आपकी मौत पर यदि ओलादें

अंतिम संस्कार कर दें तो यह भी

हमारी आपकी खुशकिस्मती होगी।


बाकी आजकल की औलादों से 

किसी भी तरह की उम्मीदें

दिवास्वप्न सरीखी ही होगी,

इसके पीछे की पृष्ठभूमि में

आखिर हमारी आपकी भूमिका भी तो

इन सबके लिए सबसे बड़ी होगी। 


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