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पहले भी तो हुआ है ऐसा

पहले भी तो हुआ है ऐसा

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पहले भी तो हुआ है ऐसा 
न जाने कितने ही रोज 
खामोश रहना 
किसी हरकत का न होना 
और फिर अचानक ही चहक उठना 
जैसे कल ही की तो बात है

जैसे कोई नदी हिमालय से निकलती हुई 
खुद ही जम जाये 
और फिर पाकर उस आफताब की गर्मी 
खुद ही पिघल जाना

पर अब की ये खामोशी 
और वक़्त से ज्यादा ही लम्बी हुई 
कब सन्नाटे मे तब्दील हुई 
मालूम ही न हुआ

और वो नदी जैसे जम गयी हो 
हमेशा की खातिर 
आफताब से मुंह मोड़ कर 
चिनार के पेड़ो के पीछे छुप कर

और मैं बैठा उस छोर 
दूर किनारे से लग कर 
इंतज़ार मे उस के अविरल होने के 
फिर से तृप्त होने के

 


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