ओ वुमनिया
ओ वुमनिया
ओ वुमनिया....
काहे को सहे जुलमिया,
जी ले अपनी जिंदगी जी भर के,
जब बुलावे तुझे सखियाँ।
जुलम सहते सहते कब तक दिन काटेगी,
घु-घुट कर कब तक जिएगी,
तुझे तेरी जिंदगी जीने का हक है,
ये बात कब तू समझ पाएगी।
शौहर दिखाए रौब हमेशा,
दिखाए बेवजह मर्दानगी,
कर जुलमों का सामना डटकर,
तू भी दिखा तेरी मौजुदगी।
घर से बाहर निकलते ही अनचाही नजरें,
तो कभी अनचाही छूअन,
कभी कभी घर के झगडें,
तो उठ जाए चीजों से मन।
अपने आपको पहचान जरा,
खडी हो जा जुलमों के खिलाफ,
कानून तो बना है हमारे लिए,
कभी होतीे है उनकी सजा भी माफ।
बात एक बाँध ले गाँठ,
जघ लज अपनी जिंदगी,
भरकर उँची उडान,
दिखा अपनी होशियारी,
मत सहन कर ज़ुल्मों को,
बनकर तू नारी अबला,
हो जा खडी अपने लिए,
ले अपनेआप ज़ुल्मों का बदला।
