नव विवाहित: माँ: भाग:4
नव विवाहित: माँ: भाग:4
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बालक को जब क्षुधा सताती,
निज तन से ही प्यास बुझाती,
प्राणवायु सी हर रग रग में,
बन प्रवाह बह जाती है,
धरती पे माँ कहलाती है।
माँ की ममता अतुलित ऐसी,
मरु भूमि में सागर जैसी,
धूप दुपहरी ग्रीष्म ताप में,
बदली बन छा जाती है,
धरती पे माँ कहलाती है।
नित दिन कैसी करती क्रीड़ा,
नवजात की हरती पीड़ा,
बौना बन के शिशु अधरों पे,
मृदु हास्य बरसाती है।
धरती पे माँ कहलाती है।
