नेकी की डोर
नेकी की डोर
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रंग दे हज़ार रंगो से, तन को ऊपर ऊपर से,
मन का क्या करेगा जो, मेला ही है भीतर से।
हँस हँस के मिलता है तू, हर दूसरे इंसान से,
ख़ुद से मिल के पूछ ज़रा, तू अपने ईमान से।
छोड़ के माया जग की, बांध ले नाता ख़ुद से,
मन के सच को जान तू, तोड़ के नाता झूठ से।
पहचान अपने आप को, ना पूछ तू यूं सब से,
रख विश्वास ख़ुद पर तू, उम्मीद न रख जग से।
नेकी की ये डोर को तू, थाम ज़रा ले ज़ोर से,
के तरक्की चूमने कदम, आए चारों और से।
