मुझे याद आती है मुंबई
मुझे याद आती है मुंबई
मुझे याद आती है मुंबई,
वो चाचा की टापरी की गरम-गरम कटिंग चाय,
बावा की ईरानी होटल का अंडा भुर्जी और मस्का पाव,
वो लोकल ट्रेन की गर्दी,
ट्रैन में सीट पक्कडने की दौड़,
और सीट ना मिलने पर ट्रेन के दरवाजे पर लटकना,
और मुंबई की वादियों का लुत्फ उठाना।
मुझे याद आती है मुंबई की खाऊ गाली,
जहां दोस्तों के साथ कॉलेज बांख कर ,
खाना खाने का बड़ा शौक था,
चटकदार चाट हो,
या लबाबदार खीमा,
या हो गरम गरम जलेबी और राबड़ी का चास्का।
लोगों की शोरगुल,
पुश-कार्ट वालों का हाला,
प्रीमियर पदमिनी की पो-पो,
और बेस्ट बस के लिए लोगों की कतार।
मुंबईकर से पुछो ज़रा मुंबई क्या है?
जान है , शान है, सर का ताज है,
एक शेहर ऐसा जोह कभी न सोता हो,
एक शेहर ऐसा जिसने सभी को अपनाया हो,
एक शहर ऐसा जिसने सभी को पनाह दी हो।
तुम हमें धारावी कहके हस्ते हो,
ओ भाई मेरे, धारावी के उस कूचे गलियों में से ही
विदेशी ६६५ मिलियन डॉलर का आमदनी बनाता है।
अमित हमारा, धरम हमारा,
बादशाह और भाईजान हमारे
रफ़ी,किशोर,लाता,और आशा की मधुर सुर जो,
तुम सुनकर उठते और सोते हो,
वोह हमारे,
मुंबई की गलियां हमारी,
ऊंचे इम्मारत हमारी,
वो टूटे सड़के भी हमारी,
पगलती ट्रैफिक जैम हमारे
वो गेटवे ऑफ इंडिया
और मरीन ड्राइव्स की सुभह और शाम भी हमारी।
याद आती है मेरी तन्हाईओं में मेरी दुलारी मुंबई।
©चित्रा अरुण