मर्द को दर्द
मर्द को दर्द
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आखिर कौन कहता है
मर्द को दर्द नहीं होता है
होता हैं बहुत होता है
नख से शिखा तक
रोम रोम में और
बदन के हर पोर में
अपना दर्द जता पाना
हम सीख नहीं पाते
रोते हम भी है बस
चीख नहीं पाते
किराने की उधारी
खुद की खुद्दारी
आर्थिक लाचारी
घर में बीमारी
ऐसी कई जिम्मेदारी
हमें मौका नहीं देती
हमदर्दी पाने का
हमारी महानता के
बड़े किस्से नहीं होते
हमारे दुख दर्द के
हिस्से नहीं होते है
हम बस दौड़ रहे है
जिम्मेदारी की रस्सी में जकड़े
अपनी भावना वेदना हाथ में पकड़े
गर्म और बर्फीला मौसम
हमारे लिए भी गर्म सर्द होता है
सच मानिए
मर्द को भी दर्द होता है
