मंज़िल है हमसफ़र
मंज़िल है हमसफ़र
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अगर चलने की ख्वाहिश रखते हो,
तो नज़रें उठाना सीखो,
दास्तान दुसरो का नहीं,
अपने हुनर का गुनगुणानां सीखोI
ये पता नहीं की चाहिए क्या,
बस दौड़ लगी है पाने की,
लकीरें हाथों की नहीं,
तेरे हौसले ले जाएंगे
दरिया के उस पार,
एक उड़ान तो भर,
मिशाल बन जाएगा
इस ज़माने की।
जो सोया है तेरे अंदर वर्षो से,
एक थपकी से उसे जगाना सीखो,
आंधियां तो बहुत आएगी
इस ज़िन्दगी में दोस्त,
अब तूफानो से हॉट्ज
मिलाना सीखो।
इन्तेकाब बस दो ही है,
चलो और चलने दो,
साथी है सफर और
मंज़िल हमसफ़र,
सफर भले ही बदलो,
हमसफ़र वही रहने दो।