मिट जाती है रात
मिट जाती है रात
1 min
6.7K
रात की नदी गहरी होती है
आकाश तक की ऊंचाइयों को गहरे में दफ़न किये
रात की नदी अकेली होती है
उसके यौवन जल में नहाते हैं कितने चन्द्रमा
अकेला होता है उसका मन
स्याह अंधेरा छाया रहता है
घाटियों की चुप्पी उसकी साथी होती है
समंदर में सामने की अधीरता उसे पत्थरों से संघर्ष करने को प्रेरित करती है
फिर बस जाता है सौंदर्य
गिरती है कुछ अमृत की बूँदें
मिट जाती है रात
शनै शनै तरुवर बोलने लगते हैं
दोनों किनारों पर फूलों और जिंदगियों का खिलना जारी रहता है
वह बहती जाती निर्विघ्न