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Manisha Charakhwal

Others

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Manisha Charakhwal

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मेरी सोच का भूगोल

मेरी सोच का भूगोल

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मेरी सोच का भूगोल,
सरहदों में नही बंटा अभी,
ना धर्म के चोले से ढका,
ना जाति की फसल उगी है,
ना प्रेम को छोड़ा इसने..
मेरी सोच का भूगोल,
आज़ाद है अभी ये,
उड़ते पंछी की तरह,
बहती हवा की तरह,
खुले असमान की तरह.
मेरी सोच का भूगोल..
कोई कर्क रेखा नही है,
कोई बटवारा नही है,
कोई भेद नही है,
किसी का पहरा नही है इसमें,
मेरी सोच का भूगोल..
ख़ाली है अभी
गाय और सूअर के लिए,
परिंदों के लिए इन्सान के लिए,
फूलों और झरनों के लिए,
मेरी सोच का भूगोल.


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