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Sita Suwalka

Others

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Sita Suwalka

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मेरी रचना गृहिणी

मेरी रचना गृहिणी

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सबके बस की बात नहीं हैं ये 

गृहिणी हूँ साहब कोई मज़ाक नहीं है ये।


टाइम मैनजमेंट के बारे में ज्यादा नहीं जानती हूँ, 

लेकिन सवेरे से साँझ तक की जिम्मेदारियों बखूबी निभाती हूँ। 


सबके बस की बात नहीं हैं ये 

गृहिणी हूँ साहब कोई मज़ाक नहीं है ये।


ऑफिस नहीं देखा लेकिन फ़ीडबैक भी मिल जाते हैं, 

थोड़ा- सा स्वाद इधर- उधर हुआ, सबके तार हिल जाते हैं। 

धैर्य की ताकत एवं कौशल से फिर से नए व्यंजन बन जाते हैं। 


सबके बस की बात नहीं हैं ये 

गृहिणी हूँ साहब कोई मज़ाक नहीं है ये।


छुट्टी के नाम का मिलता नहीं कोई इतवार, थोड़ी देर के लिए कहीं चले जाओ तो हो जाती हैं तकरार। 

सबके बस की बात नहीं हैं ये 

गृहिणी हूँ साहब कोई मज़ाक नहीं है ये।


हॉउस कीपर, ड्राइवर, काउंसलर, पता नहीं क्या- क्या रोल निभाती हूँ। 

बगैर किसी तनख्वा  के, एक तारीफ़ से ही खुश हो जाती हूँ।  

सबके बस की बात नहीं हैं ये 

गृहिणी हूँ साहब कोई मज़ाक नहीं है ये।


जहाँ भी जाओ, कुछ नादान होते पूछते हैं, क्या करती हो ? पहला ही सवाल। 

गृहिणी सुनकर, ऐसा दिखाते  हैं जैसे  नहीं है ये कोई कमाल।  

                                           

सबके बस की बात नहीं हैं ये 

गृहिणी हूँ साहब कोई मज़ाक नहीं है ये।


मैंने भी एक विद्वान से कर लिया एक सवाल,

क्या है आपकी नज़रों में एक गृहिणी ?

बड़ी ही सहजता से बोले, एक गहरा सा अर्थ है,

पूरा घर-परिवार है जिसका ऋणी। 


सुनकर उनकी बात, गर्व से कहती हूँ। 

सबके बस की बात नहीं हैं ये 

गृहिणी हूँ साहब कोई मज़ाक नहीं है ये।


वर्किंग वुमन दिला रहीं कई नए रोज़गार, 

वहीं गृहिणी, संस्कार देकर कर रही हैं भावी पीढ़ी तैयार। 

सबके बस की बात नहीं हैं ये 

गृहिणी हूँ साहब कोई मज़ाक नहीं है ये।



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