मेरा स्वप्न
मेरा स्वप्न
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खुदगर्जी में डूब कर खुदा को भूल गया मैं
एक रास्ते पर चलते चलते उसी से रूठ गया मैं
ये करम है इस जीवन का भरम है इस मन का
इसी सोच में इस जीवन को भूल गया मैं
एक याद है जो अटकी है, जो भटकी है इस दिमाग में
एक सपना है जो लटका है,
जिसे मैं भूलते भूलते भूला हूँ,
जिसे मैं भूल के भी ना भूला हूँ,
जिसके पीछे चलते चलते मैं अपने दिल की बेहाली भूला हूँ ।