मानव मन का जागरण
मानव मन का जागरण
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इस धरा पर सर्वस्व धरा रह जाएगा।
मानव का मन जब तक शुद्ध नहीं
हो पाएगा।।
मेरा, तुम्हारा, जब तक यह भाव
यहां पर पांव अपने फैलाएगा।
तब तक किसी को समान अधिकार नहीं मिल पाएगा।।
देश में तनिक न बदलाव आएगा।।
मानव की आंखों पर जब तक निजता का वर्चस्व रहेगा।
गंगा को पावन नहीं कर पाएगा।।
भूमि दूषित, जल भी दूषित,
पर्यावरण का कण-कण दूषित
भारत भूमि कराह रही है।
उठो धरा के वीर सपूतों !
कुछ परिवर्तन करने का सामर्थ्य
जुटाओ।
वन, जीव-जंतुओं पर भी अपना
प्रेम लुटाओ।
नहीं तो कौआ, और गोरैया का और अंत में मानव का वर्चस्व न
रहने पाएगा।।
इस धरा पर सर्वस्व धरा रह जाएगा।
मानव का मन जब तक शुद्ध नहीं हो पाएगा।।