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SAURABH PATEL

Others

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SAURABH PATEL

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लगा हूं

लगा हूं

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जब से तेरी आंखों को पढ़ने लगा हूं 

मैं ख़ुद को अनपढ़ समझने लगा हूं


तुम मुझे अब इतनी भी बुरी नहीं लगती

जब से मैं इश्क़ को इश्क़ समझने लगा हूं


शामे जिस कदर गुज़रती है तेरी यादों में

लगता है कि मैं वक्त की तेज़ी को हराने लगा हूं


वो मुझे एक नाकाम लड़का समझती है

जब से मैं इश्क़ में किए गए वादों पे काम करने लगा हूं


महफ़िल में तेरा ज़िक्र कुछ यूं पसंद है मुझे

कि अपने शेर पर खुद ही मुकर्रर कहने लगा हूं


ज़माने ने मुझे बाहर कर दिया अपने दायरे से

जब से मैं अपनी सोच को तवज्जो देने लगा हूं


मेरा घर मुझे पूछता है तुम"सौरभ"ही हो

जब से मैं उसकी तस्वीर में रहने लगा हूं।


              


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