लेखक का धुंधला प्रेम
लेखक का धुंधला प्रेम
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एक लेखक का धुंधला प्रेम,
जो गढ़ता है स्मृतियों को नए रंगों में।
भंगिमा से दूर, आकाश सा खुला प्रेम,
और बनाता है कुछ किरदार, कुछ परिस्थितियां।
फिर एक रंग से तुम्हें भी भरा जाता है,
बिना तुम्हारे अनुमति के।
कई नए रूप पर वहीं पुराना अंदाज,
झूठे तथ्यों से रचा गया सच्चा प्रेम।
जो रखता है द्रव रूपी अस्तित्व,
जिसका पात्र स्वयं लेखक और उसकी कल्पना।
असल में हारा लेखक बेबाक सा बन जाता है।
करता है स्वाधीनता की बातें ,
भूल कि बेड़ियाँ अब भी पैरों में हैं।
उदासीन सा लेखक, बुनता है रूमानी बातों का जाल।
भरता है प्रेम प्रसंग में तरह-तरह के रंग,
हरा भरता है, गुलाबी भरता है, फिर लाल
अंत में कत्ल कर देता है अपनी कल्पना का
उसी लाल रंग से।
असल में हारा लेखक कुछ धुंधला सा प्रेम लिखता है।
