.क्यों जलता पागल परवाना
.क्यों जलता पागल परवाना
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दीपशिखा तो कर्म निरत है
क्यों जलता पागल परवाना
चूम-चूम कर,झूम-झूम कर
क्यों होता इतना दीवाना !!
जल-जल कर एक वर्तिका
निज अस्तित्व मिटा देती है
हटा तिमिर घनघोर घटा
भटकों को राह दिखा देती है
प्राण पतंगा देता अपने
जग को क्या दे पाता है?
उसका जीवन और मरण
परहित के काम न आता है?
है महान उद्देश्य दीप का
घर-घर पूजा जाता है
शीश बिठाता ये जग उसको
परहित के काम जो आता है.
