कविता संवत्सर
कविता संवत्सर
विक्रमी संवत्सर की अनोखी निराली परम्परा।
हिंदू नव वर्ष की प्रारंभ चैत्र मास शुक्ल प्रतिपदा।।
चैत्र, बैसाख, मास का ज्ञान कराता नक्षत्र चित्रा।
राम राज्य अभिषेक इस दिवस हुआ याद दिलाता।।
वसंती हवा में हर पादप नव पल्लवित हुआ जाता।
सरसों के पुष्प सुगंध से लहराये गेहूं की हर डाल।।
हरेक के मन में नवयौवन सा मदमस्त नशा छा जाता।
प्राचीन संस्कृति में ही हर जन समाहित हो जाता।।
गुड़ी पड़वा, होली मोहल्ला विशु नव वर्ष में आता।
राम राज्य के साथ साथ विक्रमादित्य की याद दिलाता।
फिरंगी नव वर्ष में कुदरत का श्रृंगार सूखा सा होता।
हिंदू नव वर्ष में कुदरत का श्रृंगार मृदुमयी हो जाता।।
नव वर्ष हिंदू का त्योहार सा मां की नवरात्र आता।
संस्कृति का अनोखा संगम भारतीय के मन में छा जाता।।
प्रकृति के मनोहर संगीत में चारों ओर उल्लास छा जाता।
नव वर्ष नयी उमंग नव प्रेरणा लोगों के दिलों में भर जाता।।
