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कुछ बात.....

कुछ बात.....

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कुछ बात होंठ पर टिके रहे

कुछ घबराहट थी सो सिले रहे

होंठो पे रखे ये धीर-अधीर

बस स्वर-सुधा को तरस रहे

भ्रमजाल-जाल ये यौवन का

ये कू-कू कोयल सी बोली

अगर यही मुहूर्त है मिलने का

तो क्यूँ ना हर दिन आऐ होली

ये तेरे चेहरे की लालिमा

क्या कोई रंग भा पाऐगा

पर बस एक स्पर्श के मोह मे

ये हस्त स्वयं बढ़ जाऐगा

धरती का ऐश्वर्य सना

तेरे इस कोमल तन में

निहार सकूँ मैं तुझको जी भर

चाह उठी बस इस दिल में

हँसते है वो लोग मुझपर

कहते जाने किससे बातें करता

बस बैठ अकेला कहीं भी मैं

दूर तलक तुझको तकता/

हौले-हौले ये जो बयार

मेरे सामने से गुज़र जाती है

वैसी चंचलता तो मानो

केवल तुझ पर भाती है

आभास होता है मुझको की

तूने आँचल लहराया होगा

ये हवा का झोंका बस

तुझको छू कर आया होगा

आगे को मैं बढ़ा चला

पतवार सँभाले जाने कोई

बिन माँझी ये नौका मेरी

ढूँढे तुझको या मंज़िल कोई

जो पड़े कदम प्रेम-तट पर

भावों के कंकर संजोऐ

एहसास वो प्यारा गहरा होगा

जो दिल धड़के और आँखें रोऐ

और लब से लब सिल जाऐंगे

आँखें ही सब कह जाऐंगी

बातों की भाषा का औचित्य

बस वहीं ख़त्म हो जाऐगा

और बस एक स्पर्श के मोह में

ये हस्त स्वयं बढ़ जाऐगा

और बस एक स्पर्श के मोह में

ये हस्त स्वयं बढ़ जाऐगा

 


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